आँख में तिरती रही उम्मीद सपनों के लिए,
गीत कोई गुनगुनाओ आज पलकों के लिए।
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
ना ज़मीं है ना हवा है और ना तितली कहीं,
आसमाँ भी गुम हुआ है आज शहरों के लिए।
बाँध कर रखिए सभी रिश्ते वगरना यूँ न हो,
छूट जाते साथ हैं कई बार बरसों के लिए।
आम की अमिया कुतरने शाम का सूरज रुका,
बँध गए कोयल युगल हैं सात जनमों के लिए।
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
-महेन्द्र वर्मा
43 comments:
वाह सर!!!!!!!!!!!
बेहतरीन गज़ल....
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
लाजवाब शेरों से सजी..
सादर.
अनु
बहुत बढ़िया भाई जी |
आभार ||
ना ज़मीं है ना हवा है और ना तितली कहीं,
आसमाँ भी गुम हुआ है आज शहरों के लिए।
Sach Kaha ..... Bahut Sunder Gazal
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए। - उम्दा शेर
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।... जिसकी आँच में गांठें जल जाएँ और पहले सी सोंधी खुशबू रह जाए
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
ना ज़मीं है ना हवा है और ना तितली कहीं,
आसमाँ भी गुम हुआ है आज शहरों के लिए।
आसमा तू देख रिश्तों में फफूंदी लग गई ,....
वाह क्या बात है .एक तरफ कुदरत का मानवीकरण दूसरी तरफ मानव का फफूंदी -करण.दोनों सटीक .
बाँध कर रखिए सभी रिश्ते वगरना यूँ न हो,
छूट जाते साथ हैं कई बार बरसों के लिए।very nice.
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए....
सुभान अल्ला ... बहुत ही कमाल का शेर है इस खूबसूरत गज़ल का ...
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।
bar-bar padhi hoon......bahot achcha likhe hain.
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।
वाह! क्या बात है,बेहतरीन गज़ल.........
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
कभी कभी ऐसा ही लगता है सर...
है बहुत मुश्किल की गिरकर गीत भी गाये कोई
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए...
बहुत उम्दा अशार... खुबसूरत ग़ज़ल...
सादर....
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।.....
इसलिए अपुन तो इतनी बढिय़ा गजल कह ही नहीं पाते। कभी-कभार थोड़ा बहुत काम चला लेते हैं। आखिर की दो पोस्ट पर भी टिप्पणी छोड़ी हैं।
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
बहुत-बहुत खूबसूरत...लाजवाब... सादर
उस ख़ास मिसरे का बेसब्री से इन्तजार है . बेहद खुबसूरत लिखा है..
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
्क्या बात कही है ……बहुत खूब गज़ल
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
लाजवाब वर्मा साहब! क्या सुंदर प्रयोग किया है, रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए। ज़िन्दगी ऐसे ही रूठे लोगों को मनाने में बीत जाती है, जो कुछ मिसरों के लिए रूठते रहते हैं।
bahut khoob.vah.....aabhar..mere jile ke neta ko C.M.bana do and 498-a
बेहतरीन रचना ,मुखर अभिव्यक्ति प्रशंशनीय है / शुभकामनायें जी /
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।......rooth jaate harf hain kuch khas misron ke liye...bar bar padhne ko dil karta hai..bahut hee shashakt ghazal...sadar badhayee ke sath
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।......rooth jaate harf hain kuch khas misron ke liye...bar bar padhne ko dil karta hai..bahut hee shashakt ghazal...sadar badhayee ke sath
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।
ना ज़मीं है ना हवा है और ना तितली कहीं,
आसमाँ भी गुम हुआ है आज शहरों के लिए।
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
संजय जी, बहुत ही नये प्रतिबिम्ब उतारे हैं, दाद कबूल कीजियेगा.
कृपया संजय जी के स्थान पर महेंद्र जी पढ़ें, लिपिकीय त्रुटि हेतु क्षमा करेंगे.
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
बहुत खूब.. एक सुंदर ग़ज़ल पढ़ने को मिली..
बाँध कर रखिए सभी रिश्ते वगरना यूँ न हो,
छूट जाते साथ हैं कई बार बरसों के लिए।
आम की अमिया कुतरने शाम का सूरज रुका,
बँध गए कोयल युगल हैं सात जनमों के लिए।
चर्चा मंच के मार्फ़त एक मर्तबा यह ग़ज़ल फिर पढ़ी .अभय और सीख दोनों बांटती है यह ग़ज़ल .
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए....
वाह ..बहुत खूब लिखा है आपने ... लाजवाब करती पंक्तियां
वर्मा सा'ब!
हर्फ़ आपसे रुठ जाएँ हो ही नहीं सकता.. इतनी नरमी से आप उनको उठाते हैं, चुनते हैं, पिरोते हैं कि हर्फ़-हर्फ़ की इज्ज़तअफजाई होती है..
तीसरे शेर पर गुलज़ार साहब याद आये:
मचल के जब भी आँखों से, छलक जाते हैं दो आंसू,
सुना है आबशारों को बड़ी तकलीफ होती है!
/
बहुत ही सुन्दर गज़ल!!
बहुत खूबसूरत गज़ल पढ़ने को मिली !
वाह !
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
शुभकामनाएँ!
आँख में तिरती रही उम्मीद सपनों के लिए,
गीत कोई गुनगुनाओ आज पलकों के लिए।
....लाज़वाब! हरेक शेर बहुत उम्दा और सार्थक..
http://aadhyatmikyatra.blogspot.in/
ना ज़मीं है ना हवा है और ना तितली कहीं,
आसमाँ भी गुम हुआ है आज शहरों के लिए।....वाह: बहुत सुन्दर..
ना ज़मीं है ना हवा है और ना तितली कहीं,
आसमाँ भी गुम हुआ है आज शहरों के लिए।
वाह !! क्या खूब लिखा है ...
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
महेंद्र जी , ये चमत्कारी भाव कहाँ से ढूँढ लाते हैं
आँख में तिरती रही उम्मीद सपनों के लिए,
गीत कोई गुनगुनाओ आज पलकों के लिए।
kaya baat hai sundar gajal ....
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
विशिष्टता लिये हुए हैं सभी शेर पर ये अति विशिष्ट हैं ..संग्रहणीय
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
कितने आसान शब्दों में इतनी बड़ी प्रेरणा...लाजवाब!
गज़लगोई की आपकी शैली बहुत खूबसूरत है, पढ़ो तो बहुत आसान दिखती है लेकिन ऐसा एक भी शेर अपन नहीं कह सकते।
छा गये वर्मा साहब..
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
हरेक शेर बहुत उम्दा और सार्थक बधाई स्वीकारें...महेंद्र जी
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
लाजवाब.....
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।
jindagi se judi jindagi ki jubani.
LAJAWAB LINES.
superb ghazal as usual just loved it.
...क्या खूब शेर कहे हैं, लाजवाब, याद रखने लायक...!!!!
क्या बात है, इतने कमाल के शेर कहे हैं आपने कि कोई भी इसे पढ़कर वाह वाह कह उठेगा। आप तो बस इसी तरह लिखते रहिए। खासकर इन दो शेरों ने तो आपका मुरीद बना दिया -
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
सचमुच कमाल के शेर!
क्या बात है, इतने कमाल के शेर कहे हैं आपने कि कोई भी इसे पढ़कर वाह वाह कह उठेगा। आप तो बस इसी तरह लिखते रहिए। खासकर इन दो शेरों ने तो आपका मुरीद बना दिया -
है बहुत मुश्किल कि गिरकर गीत भी गाए कोई,
है मगर आसान कितना देख झरनों के लिए।
है नहीं आसाँ गजल कहना कि मेरे यार सुन,
रूठ जाते हर्फ़ हैं कुछ ख़ास मिसरों के लिए।
सचमुच कमाल के शेर!
आसमाँ तू देख रिश्तों में फफूँदी लग गई,
धूप के टुकड़े कहीं से भेज अपनों के लिए।
गज़ब की रचनाशक्ति पायी है महेंद्र भाई ! वेहद प्रभावशाली रचना ...
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