विपत बनाती मनुज को, दुर्बल न बलवान,
वह तो केवल यह कहे, क्या है तू, ये जान।
कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप,
सहज विवेकी बन रहें, कम होगा संताप।
मूर्खों के सम्मुख स्वयं, जो बनते विद्वान,
विद्वानों के सामने, वही मूर्ख पहचान।
क्रोध जीतिए शांति से, मृदुता से अभिमान,
व्यर्थवादिता मौन से, लोभ जीतिए दान।
बड़े बिना बोले बचन, करते यों व्यवहार,
विनय सिखाते लघुन को, करते पर उपकार।
-महेन्द्र वर्मा
13 comments:
Bahut sunder evam shikshaprad
मूर्खों के सम्मुख स्वयं, जो बनते विद्वान,
विद्वानों के सामने, वही मूर्ख पहचान।
very right .nice presentation of feelings .
कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप,
सहज विवेकी बन रहें, कम होगा संताप।
सभी दोहे बहुत सुंदर और संदेश देने वाले ... आभार
शिक्षित करती पंक्तियाँ. बहुत उम्दा लिखा है आपने.
नीति के दोहे बहुत अर्थपूर्ण हैं लेकिन
'कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप..'
- ये बड़े गहरे प्रश्न हैं !
विपत बनाती मनुज को, दुर्बल न बलवान,
वह तो केवल यह कहे, क्या है तू, ये जान।
कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप,
सहज विवेकी बन रहें, कम होगा संताप।
बहुत अच्छे दोहे
मूर्खों के सम्मुख स्वयं, जो बनते विद्वान,
विद्वानों के सामने, वही मूर्ख पहचान।
बहुत बढ़िया,सुंदर दोहे,,
Recent post: एक हमसफर चाहिए.
क्रोध जीतिए शांति से, मृदुता से अभिमान,
व्यर्थवादिता मौन से, लोभ जीतिए दान।
सदैव की भांति निश्छल दोहे प्रणाम
क्रोध जीतिए शांति से, मृदुता से अभिमान,
व्यर्थवादिता मौन से, लोभ जीतिए दान।..
लाजवाब दोंहे हैं महेंद्र जी ... एक से बढ़ के एक .... सार्थक सन्देश देते ...
लाजवाब...प्रभावी और सटीक दोहे....बहुत बहुत बधाई...
कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप,
सहज विवेकी बन रहें, कम होगा संताप।
सभी दोहे बहुत सुंदर और संदेश देने वाले...आभार महेंद्र जी
बहुत बढ़िया सन्देश देती प्रस्तुति.
आभार.
प्रेरक दोहे
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