आभास



लगता है सत्य कभी
अथवा आभास,
तिनके-से जीवन पर
मन भर विश्वास।

स्वप्नों की हरियाली
जीवन पाथेय बनी,
जग जगमग कर देती
आशा की एक कनी।

डाल-डाल उम्र हुई
पात-पात श्वास।

जड़ता खिलखिल करती
बैद्धिकता आह !
अमरत्व मरणशील
कहानी अथाह।

चिदाकाश करता है,                 
मानो उपहास।

                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

11 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एक दार्शनिक कविता..

Anupama Tripathi said...

तिनके-से जीवन पर
मन भर विश्वास।

गहन ....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

shalini kaushik said...

स्वप्नों की हरियाली
जीवन पाथेय बनी,
जग जगमग कर देती
आशा की एक कनी।
बहुत सुंदर दार्शनिकhअभिव्यक्ति ..

Asha Lata Saxena said...

गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति |

Ramakant Singh said...

सचमुच जीवन नवगीत

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आपका-

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

जड़ता खिलखिल करती
बैद्धिकता आह !
अमरत्व मरणशील
कहानी अथाह।

चिदाकाश करता है,
मानो उपहास।


मंथन से निकला मोती...............

दिगम्बर नासवा said...

जीवन मंथन से उपजी रचना ... बेमिसाल ...

Bharat Bhushan said...

दर्शन की बारीक रेखा पर चलती कविता. बहुत खूब.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

जीवन दर्शन...

स्वप्नों की हरियाली
जीवन पाथेय बनी,
जग जगमग कर देती
आशा की एक कनी।

बहुत भावपूर्ण, बधाई.

Vandana Ramasingh said...

स्वप्नों की हरियाली
जीवन पाथेय बनी,
जग जगमग कर देती
आशा की एक कनी।

डाल-डाल उम्र हुई
पात-पात श्वास।

बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीय