मन के नयन



मन के नयन खुले हैं जब तक,
सीखोगे तुम जीना तब तक ।

दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।

शोर नहीं बस अनहद से ही,
सदा पहुँच जाएगी रब तक।

दिल दरिया तो छलकेगा ही,
तट भावों को रोके कब तक।

जान नहीं पाया हूँ  कुछ भी,
जान यही पाया हूँ अब तक।

-महेन्द्र वर्मा

16 comments:

पंखुडी said...

मन के नयन खुले हैं जब तक,
सीखोगे तुम जीना तब तक ।

वाह.....बहुत ही सुंदर प्रस्तुति..

ओंकारनाथ मिश्र said...

मज़ा आ गया पढ़कर .

Bharat Bhushan said...

कविता की सादगी में कविता के भावों का जादू छिपा है.

दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।

जान नहीं पाया हूँ कुछ भी,
जान यही पाया हूँ अब तक।

ये पंक्तियाँ तो कमाल हैं.

जमशेद आज़मी said...

बहुत ही सुंदर और प्रभावी रचना की प्रस्‍तुति। मुझे बहुत ही अच्‍छी लगी।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा सा.
सादगी के साथ दर्शन का पुट आपकी ही ग़ज़लों में दिखता है. सदा प्रेरित करने वाला. मक़्ते ने ग़ज़ब का प्रभाव पैदा किया है. जो समझ गया वो ज्ञानी! प्रणाम स्वीकारें हमारा!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर पंक्तियाँ .... अर्थपूर्ण

Kailash Sharma said...

दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।
>>>वाह...लाज़वाब...अद्भुत अभिव्यक्ति...

Vandana Ramasingh said...

दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।


हमेशा की तरह कमाल की ग़ज़ल आदरणीय

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुन्दर .... हिंदी के शेर सीधे दिल में उतर रहे हैं ...
कमाल की ग़ज़ल ...

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुन्दर .... हिंदी के शेर सीधे दिल में उतर रहे हैं ...
कमाल की ग़ज़ल ...

sameer said...

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Hindikunj said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
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dj said...

शोर नहीं बस अनहद से ही,
सदा पहुँच जाएगी रब तक।

दिल दरिया तो छलकेगा ही,
तट भावों को रोके कब तक। बहुत ही सुंदर रचना गहरा दर्शन समेटे। लाजवाब है हर ेक पंक्ति

Asha Joglekar said...

दीये को कुछ ऊपर रख दो,
पहुँचेगा उजियारा सब तक ।

शोर नहीं बस अनहद से ही,
सदा पहुँच जाएगी रब तक।

बहुत ही सुंदर तत्वज्ञान। बहुत दिनों बाद आपको पढा, बेहद भाया।

Deepalee thakur said...

शोर नही बस अनहद से ही......लाजवाब

Amit Shukla said...

Nice information