फूल हों ख़ुशबू रहे












दर रहे या ना रहे छाजन रहे,
फूल हों ख़ुशबू रहे आँगन रहे ।

फ़िक्र ग़म की क्यों, ख़ुशी से यूँ अगर,
आँसुओं से भीगता दामन रहे ।

झाँक लो भीतर कहीं ऐसा न हो,
आप ही ख़ुद आप का दुश्मन रहे ।

ज़िंदगी में लुत्फ़ आता है तभी,
जब ज़रा-सी बेवजह उलझन रहे ।

कल सुबह सूरज उगे तो ये दिखे,।
बीज मिट्टी और कुछ सावन रहे ।

                                                      -महेन्द्र वर्मा

3 comments:

Bharat Bhushan said...

हर दूसरी पंक्ति मन पर सशक्त दस्तक देती है. ये चार तो बेहद गहरी अर्थध्वनि करके अपनी छाप छोड़ती हैं-

झाँक लो भीतर कहीं ऐसा न हो,
आप ही ख़ुद आप का दुश्मन रहे ।
ज़िंदगी में लुत्फ़ आता है तभी,
जब ज़रा-सी बेवजह उलझन रहे ।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ख़ूब ...
हर शेर नया आग़ाज़ है ... अलग धार है हर शेर की ...
लाजवाब ग़ज़ल ...

Amrita Tanmay said...

बेहद उम्दा ।