रोज़-रोज़ यूं बुतख़ाने न जाया कर,
दिल में पहले बीज नेह के बोया कर।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
लोग देखकर मुंह फेरेंगे झिड़केंगे,
सरे आम ग़म का बोझा न ढोया कर।
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
-महेन्द्र वर्मा
दिल में पहले बीज नेह के बोया कर।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
लोग देखकर मुंह फेरेंगे झिड़केंगे,
सरे आम ग़म का बोझा न ढोया कर।
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
-महेन्द्र वर्मा