हिंदुस्तानी संगीत में तालवाद्यों में तबला सबसे अधिक प्रतिष्ठित वाद्ययंत्र है । शास्त्रीय संगीत हो या सुगम, गायन-वादन हो या नृत्य, एकल वादन हो या संगत, लोकगीत हो या सिनेगीत, सभी में तबले की श्रेष्ठ भूमिका सदैव रही है । सदियों से इस तालवाद्य पर पुरुषों का एकाधिकार रहा है । यह माना जाता था कि तबला वादन एक कठिन कला है ,इसमें अन्य वाद्यों की तुलना में अधिक शारीरिक और मानसिक परिश्रम की आवश्यकता होती है इसलिए इसे महिलाएँ नहीं बजा सकतीं।
किंतु यह मान्यता अब टूट चुकी है । देश और विदेश की अनेक महिलाएँ आज शास्त्रीय तबला वादन के क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिष्ठा और ख्याति अर्जित कर रही हैं, एकल वादन और संगतकार, दोनों रूपों में ।
आइए, जानें कुछ प्रसिद्ध महिला तबला वादकों का संक्षिप्त परिचय -
डॉ. अबन मिस्त्री
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डॉ. अबन मिस्त्री |
आज से लगभग 5 दशक पूर्व स्व. डॉ. अबन ई. मिस्त्री (1940-2012 ) को मंच पर एकल तबला वादन करते हुए देख कर लोग आश्चर्यचकित हुए थे । इन्हें प्रथम महिला तबला वादक होने का गौरव प्राप्त हुआ । तबला विषय पर पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त करने और अपने तबला वादन का एलबम जारी करने वाली ये पहली महिला कलाकार थीं । ये अन्य महिला कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनीं ।
अनुराधा पाल
डॉ. मिस्त्री के पश्चात तबला वादन के क्षेत्र में जिन्होंने विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त की, वे हैं पं. अनुराधा पाल ( जन्म 1975, निवास मुंबई ) जिन्हें ‘तबला क्वीन’ और ‘लेडी ज़ाकिर हुसैन’ भी कहा जाता है । इन्होंने उस्ताद अल्लारक्खा ख़ाँ और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन से तबले की शिक्षा ग्रहण की थी । अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पं. अनुराधा पाल ‘स्त्री शक्ति’ और ‘रिचार्ज’ नामक संगीत मंडली संचालित करती हैं । देश और विदेश के अनेक बड़े आयोजनों में ये प्रसिद्ध संगीतविदों के साथ तबला संगत करने के अलावा एकल वादन और अपनी संगीत मंडली के कार्यक्रमों की प्रस्तुति करती रही हैं ।
रिम्पा सिवा
‘प्रिंसेस ऑफ तबला’ के नाम से चर्चित डॉ. रिम्पा सिवा ( जन्म 1986 )
निवास कोलकाता तबला वादन के नए आयाम गढ़ रही हैं । 14 वर्ष की आयु में पं. हरिप्रसाद चौरसिया जी के साथ तबला संगत करने वाली ये युवा कलाकार देश-विदेश में एक हज़ार से अधिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी हैं । अपने पिता और गुरु प्रो. स्वपन सिवा से 3 वर्ष की आयु से ही तबला सीखने वाली रिम्पा सिवा का तबला वादन सुनकर आश्चर्य होता है कि क्या तबला ऐसा भी बज सकता है !
सावनी तलवलकर
प्रसिद्ध तबला वादक तालयोगी पं. सुरेश तलवलकर और विदुषी
पद्मा तलवलकर की सुपुत्री सावनी तलवलकर नई पीढ़ी की तबला वादक हैं । इनके
पिताजी ही इनके तबला गुरु भी हैं । उनके एकल वादन कार्यक्रमों में सावनी
तबले पर जुगलबंदी करती रही हैं । कौशिकी चक्रवर्ती की संगीत मंडली ‘सखी’
में सावनी तबले पर संगत करती हुई देश-विदेश में ख्याति अर्जित कर रही हैं ।
सुनयना घोष
1979 में कोलकाता में जन्मीं सुनयना घोष प्रसिद्ध तबला
वादक पं. शंकर घोष की शिष्या हैं । रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता
की प्रत्येक डिग्री परीक्षा में सुनयना घोष ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया ।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्धारा यूरोप और अमेरिका में कार्यक्रम
प्रस्तुत करने वाली संगीत मंडली में 10 युवा कलाकारों का चयन किया गया था
जिसमें सुनयना घोष भी सम्मिलित थीं ।
रेशमा पंडित
रायपुर, छ.ग. के जाने-माने तबला वादक पं. संपत लाल की पोती
26 वर्षीया रेशमा पंडित ने 10 वर्ष की उम्र से ही अपने पिता कुमार पंडित से
तबला सीखना प्रारंभ किया । रेशमा अब तक 300 से अधिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर
चुकी हैं । इनके एकल वादन में बोलों की सुस्पष्ट और सुंदर प्रस्तुति
चमत्कृत करती है ।
इनके अतिरिक्त पायल कोटगीरकर,नजीमाबाद, अश्विनी वाघचौरे, पुणे, विजेता हेगड़े, होन्नावर कर्नाटक, संजीवनी हसब्नीस, पुणे, मिठू टिकदर, प. बंगाल आदि भी तबलावादन के क्षेत्र में कला-साधना कर रही हैं ।
विदेश में भारतीय मूल की और अन्य देशों की महिला कलाकार भी तबलावादन में ख्याति अर्जित कर रही हैं । उनमें से कुछ के केवल नाम और चित्र से परिचय प्रस्तुत है -
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सुफला पाटनकर
यू.एस.ए. |
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हिना पटेल
कनाडा |
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सेजल कुकाडिया
यू.एस.ए. |
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अयाको इकेदा
जापान |
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समीरा वारिस
पाकिस्तान |
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अन्ना सोबेल
यू.एस.ए. |
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संस्कृति श्रेष्ठ
नेपाल |
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जिन वान
द. कारिया |
( तथ्य एवं चित्र विभिन्न वेबसाइट से संकलित )