संत सुंदरदास प्रसिद्ध महात्मा दादूदयाल जी के शिष्य थे। इनका जन्म किक्रम संवत 1653 में राजस्थान के द्यौसा नामक स्थान में हुआ था। इन्होंने वि.सं. 1746 में देहत्याग किया। इनकी रचनाओं में नैतिकता और मानव के गुणों का अच्छा चित्रण है। प्रस्तुत है संत सुंदरदास जी का एक छंद -
वाणी का महत्व
बचन तें दूर मिलै, बचन विरोध होइ,
बचन तें राग बढ़े, बचन तें दोष जू।
बचन तें ज्वाल उठै, बचन सीतल होइ,
बचन तें मुदित होय, बचन ही तें रोष जू।
बचन तें प्यारौ लगै, बचन तें दूर भगै,
बचन तें मुरझाय, बचन तें पोष जू।
सुंदर कहत यह, बचन को भेद ऐसो,
बचन तें बंध होत, बचन तें मोच्छ जू।