ख़ाक है संसार





बुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा,
है कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा।


वक़्त की फिरकी उफ़क पर जा रही,
छोड़ती अपनी निशानी, या ख़ुदा।


पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।


फूल मुरझाने लगे हैं चमन के,
खो गई है रुत सुहानी, या ख़ुदा।


उल्लुओं ने पंख नोचे हंसिनी के,
दुश्मनी लगती पुरानी, या ख़ुदा।


हंस रहे होगे हमारे हाल पर,
आपकी है मेहरबानी, या ख़ुदा।


ख़ाक है संसार, माज़ी के सिवा, 
है यहां हर चीज़ फ़ानी, या ख़ुदा।

                                                -महेन्द्र वर्मा
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उफ़क - क्षितिज, उल्लू - लक्ष्मी का वाहन
हंसिनी /हंस - सरस्वती का वाहन
माज़ी - अतीत, फ़ानी - नश्वर

ज़िदगी से सुर मिलाना चाहिए



अब अंधेरे को डराना चाहिए
फिर कोई सूरज उगाना चाहिए।

शोर से ऊबी गली ने फिर कहा
झींगुरों को गुनगुनाना चाहिए।

जुगनुओं को देख तारे जल गए
अब हमें भी झिलमिलाना चाहिए।

प्यार के पल को समझने के लिए
सुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए।

आदमी को कुछ नही तो कम से कम
जि़्दगी से सुर मिलाना चाहिए।

क्या पता कब दाग़ लग जाए कहीं
वक़्त से दामन बचाना चाहिए।

                                       -महेन्द्र वर्मा

इंसान की बातें करें

नूतन वर्ष की प्रथम रचना


सृजन का संकल्प लें,
निर्माण की बातें करें।
कामनाएं शुभ करें,
कल्याण की बातें करें।


जन्म लेता है उजाला,
हर तमस के गर्भ से,
क्यों नही तब आज स्वर्ण-
विहान की बातें करें।


अनुकरण उनका करें जो,
विश्व के आदर्श हैं,
न्याय के पथ पर चलें,
ईमान की बातें करें।


हृदय में हो नेहपूरित-
भावना सबके लिए,
यों परस्पर मान की,
सम्मान की बातें करें।


बढ़ चले हैं राह पर,
अब पग नहीं पीछे हटें,
प्रगति के सोपान की,
उत्थान की बातें करें।


है प्रकृति का नेह हम पर,
जान लें पहचान लें,
दृष्टि वैसी दे सके,
उस ज्ञान की बातें करें।


बात तो करते रहे हैं,
हम सदा भगवान की,
अब चलो ऐसा करें,
इंसान की बातें करें।

                                 -महेन्द्र वर्मा