गीत मैं गाने लगा हूं,
स्वप्न फिर बुनने लगा हूं।
तमस से मैं जूझता था,
कुछ न मन को सूझता था,
हृदय के सूने गगन में,
सूर्य सा जलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
आंसुओं के साथ जीते,
वर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
भावनाओं ने उकेरे,
चित्र सुधियों के घनेरे,
कंटकों के बीच सुरभित-
सुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
-महेन्द्र वर्मा
बंद होती सभी खिड़कियां देखिए,
ढा रही हैं कहर आंधियां देखिए।
याद मुझको करे कोई्र ऐसा नहीं,
आ रही हैं मगर हिचकियां देखिए।
भीड़ को फिर कोई आश्वासन मिला,
बज रही हैं उधर तालियां देखिए।
चल रहे थे मेरी रहनुमाई में जो,
आज गिनते रहे गलतियां देखिए।
जल चुकी हैं मगर ऐंठ बाक़ी रही,
राख सी हो चुकी रस्सियां देखिए।
किस अदा से पसीना दिखाता असर,
खेत में झूमती बालियां देखिए।
रंग फीके लगें ज़िंदगी के अगर,
बाग़ में उड़ रही तितलियां देखिए।
-महेन्द्र वर्मा
स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन,
हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन।
श्रम हुआ निष्फल, कभी पुरुषार्थ आहत,
नियति के आक्रोश से स्तब्ध जीवन।
पूर्ण न होतीं कभी भी कामनाएं,
लालसाओं से सदा विक्षुब्ध जीवन।
जिन विधानों से हुई रचना जगत की,
क्या उन्हीं से है नहीं आबद्ध जीवन ?
ज्ञात हो जिसको बताए सत्य क्या है,
कर्म का संकल्प या प्रारब्ध जीवन।
शास्त्र कहता है सदा चलते रहो पर,
है अधूरे मार्ग सा अवरुद्ध जीवन।
भाव से न अभाव से संबंध इसका,
मात्र श्वासों से रहा संबद्ध जीवन।
-महेन्द्र वर्मा