बंद होती सभी खिड़कियां देखिए,
ढा रही हैं कहर आंधियां देखिए।
याद मुझको करे कोई्र ऐसा नहीं,
आ रही हैं मगर हिचकियां देखिए।
भीड़ को फिर कोई आश्वासन मिला,
बज रही हैं उधर तालियां देखिए।
चल रहे थे मेरी रहनुमाई में जो,
आज गिनते रहे गलतियां देखिए।
जल चुकी हैं मगर ऐंठ बाक़ी रही,
राख सी हो चुकी रस्सियां देखिए।
किस अदा से पसीना दिखाता असर,
खेत में झूमती बालियां देखिए।
रंग फीके लगें ज़िंदगी के अगर,
बाग़ में उड़ रही तितलियां देखिए।
-महेन्द्र वर्मा
32 comments:
चल रहे थे मेरी रहनुमाई में जो,
आज गिनते रहे गलतियां देखिए।
यही तो दुनियाका दस्तूर है.....
बहुत सुन्दर गज़ल है
किस अदा से पसीना दिखाता असर,
खेत में झूमतीं बालियां देख्ये।
बेहतरीन शे,र । बधाई।
बहुत कमाल की ग़ज़ल हुई है ...और खास बात यह है कि सारे शेर बहुत आसान हैं ....जबान पे फट से चढ जा रहे हैं .... जीवन के विभिन्न रंगोएँ से सजी यह ग़ज़ल बहुत पसंद आई
सादर
महेंद्र जी! आपकी गज़ल की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इतने आसान लफ्ज़ों में इतनी गहरी बात कह जाते हैं कि सीधादिल से राफ्ता बन जाता है!
एक एक शेर दिल में सीधा उतरता हुआ.. किसी एक की तारीफ करना मुमकिन नहीं!! मेरी तरफ से एक ज़बरदस्त वाह!!
महेंद्र जी .... बेहतरीन शब्द , बेहतरीन भाव , बेहतरीन सन्देश ... लाजवाव रचना ...
प्यारी ग़ज़ल पढवाने के लिए आभार महेंद्र जी
wah wah bahut sundar
यथार्थ को ग़ज़ल-माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
जीवन के अनेक रंगों से सराबोर एक एक शेर दिल में उतरता हुआ.बेहतरीन लाजवाव रचना .
महेंद्र जी, आपकी रचनाओं में जहाँ एक क्रूर समय की अचूक पहचान मिलती है, वहीं उस से उत्पन्न दर्द और आत्मीयता की तलाश भी |
भीड़ को फिर कोई आश्वासन मिला,
बज रही हैं उधर तालियां देखिए ...
वाह ... आज का सच लिखा है इस शेर में ... सभी शेर कमाल के हैं ...
हर शेर कुछ सन्देश दे रहा है और आपने में एक अर्थ छिपाए हुए है बहुत सुंदर, बधाई
बेहतरीन गजल। धन्यवाद।
भीड़ को फिर कोई आश्वासन मिला,
बज रही हैं उधर तालियां देखिए।
सटीक.... बेहतरीन ग़ज़ल....
महेंद्र जी ,
सभी शेर बड़ी गहरी और सशक्त बातें कहते हैं -
आपको बधाई एवं शुभकामनायें
रंग फीके लगें ज़िंदगी के अगर,
बाग़ में उड़ रही तितलियां देखिए।
bahut sunder likhe hain aap.
भीड़ को फिर कोई आश्वासन मिला,
बज रही हैं उधर तालियां देखिए।
वाह !! ... बहुत खूबसूरत नज़्म महेंद्र जी
याद मुझको करे कोई्र ऐसा नहीं,
आ रही हैं मगर हिचकियां देखिए।
भीड़ को फिर कोई आश्वासन मिला,
बज रही हैं उधर तालियां देखिए।
चल रहे थे मेरी रहनुमाई में जो,
आज गिनते रहे गलतियां देखिए।
हर एक शेर दिल को छूता हुया। आखिरी शेर रंग फीके लगे --- भी कमाल का है। बधाई।
चल रहे थे मेरी रहनुमाई में जो,
आज गिनते रहे गलतियां देखिए।
जल चुकी हैं मगर ऐंठ बाक़ी रही,
राख सी हो चुकी रस्सियां देखिए।
महेंद्र जी , हर नज़्म बहुत ही भाव पूर्ण और सुंदर..... बेहतरीन प्रस्तुति.
mahendra ji,
khobsurat gazal...har sher behtareen.
याद मुझको करे कोई्र ऐसा नहीं,
आ रही हैं मगर हिचकियां देखिए।
क्या बात है ! बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ! मज़ा आ गया पढकर !
याद मुझको करे कोई्र ऐसा नहीं,
आ रही हैं मगर हिचकियां देखिए...
Every now and then , I think of your wonderful ghazals. That is the reason behind your hiccups.
smiles !
.
प्रभावित करती है आपकी यह भावपूर्ण गज़ल. आभार.
Ghazal ka har sher dil par gahara prabhaw chodata hai.
Behatarin ghazal ke liye aabhaar.
जल चुकी हैं मगर ऐंठ बाक़ी रही,
राख सी हो चुकी रस्सियां देखिए।
किस अदा से पसीना दिखाता असर,
खेत में झूमती बालियां देखिए
bahut hi khoobsurat gazal ,sabhi sher laazwaab .badhai sweekare aap .
very beautiful GAJAL .
word collection is great
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल.
आप की कलम को सलाम.
किस अदा से पसीना दिखाता असर,
खेत में झूमती बालियां देखिए।
बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर अपने आप में गहन जीवन दर्शन छुपाये...सरल भाषा में इतने सुन्दर भाव..बहुत खूब !
जीवन के जीवंत रंगों से लबरेज एक शानदार गजल।
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ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
महेंद्र वर्मा जी बेहद संजिदा नज्म लिखी हे धन्यवाद
आदरणीय भाई महेंद्र वर्मा जी इस सुन्दर गज़ल के लिए आपको बधाई
मेरे ब्लॉग पर आकार मेरा उत्साहवर्धन आप जैसे साहित्य मनीषी द्वारा करने पर आभार,धन्यवाद
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