अम्बर के नैना भर आए
नीर झरे रह-रह के।
प्रात स्नान कर दिनकर निकला,
छुपा क्षणिक आनन को दिखला,
संध्या के आंचल में लाली
वीर बहूटी दहके।
अम्बर के नैना भर आए
नीर झरे रह-रह के।
दुख श्यामल घन-सा अंधियारा,
इंद्रधनुष-सा सुख उजियारा,
जीवन की हरियाली बन कर
हरा-हरा तृण महके।
अम्बर के नैना भर आए
नीर झरे रह-रह के।
-महेंद्र वर्मा
नीर झरे रह-रह के।
प्रात स्नान कर दिनकर निकला,
छुपा क्षणिक आनन को दिखला,
संध्या के आंचल में लाली
वीर बहूटी दहके।
अम्बर के नैना भर आए
नीर झरे रह-रह के।
दुख श्यामल घन-सा अंधियारा,
इंद्रधनुष-सा सुख उजियारा,
जीवन की हरियाली बन कर
हरा-हरा तृण महके।
अम्बर के नैना भर आए
नीर झरे रह-रह के।
-महेंद्र वर्मा