नसीब को हैं कोसते अजीब लोग हैं,
यूं ज़िदगी गुजारते, अजीब लोग हैं।
हमने कहा जो हां मगर, उसने कहा नहीं,
हर बात को नकारते, अजीब लोग हैं।
मरना है एक दिन ये जानते हुए भी वो,
सांसें उधार मांगते अजीब लोग हैं।
भीतर भरा हुआ फरेब छल कपट मगर,
ऊपर बदन संवारते, अजीब लोग हैं।
जिनका न कभी इल्म से नाता रहा कोई,
वो फलसफे बघारते, अजीब लोग हैं।
कुछ ने कहा ख़ुदा है, कुछ ने कहा नहीं,
बेकार वक़्त काटते, अजीब लोग हैं।
30 comments:
उपर बदन संवारते अजीब लोग हैं।
अच्छी ग़ज़ल्। बधाई।
भीतर भरा हुआ फरेब छल कपट मगर,
ऊपर बदन संवारते, अजीब लोग हैं।
वाह, क्या बात है ... बहुत खूब !
आदरणीय महेंदर वर्मा जी..
नमस्कार !
वाह , क्या बात कही है
...... हर शेर लाजवाब है .... बेहतरीन प्रस्तुति
कुछ ने कहा ख़ुदा है, कुछ ने कहा नहीं,
बेकार वक़्त काटते, अजीब लोग हैं।
सुन्दर ग़ज़ल है
किसी का कहा हुआ एक शेर याद आ रहा है:-
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा क्यों मानें,
और जिसे देख लिया है वो ख़ुदा कैसे हो
जी सही कहा..... अजीब लोग ही है. अजीब ही रहेगे.
मरना है एक दिन ये जानते हुए भी वो,
सांसें उधार मांगते अजीब लोग हैं।
भीतर भरा हुआ फरेब छल कपट मगर,
ऊपर बदन संवारते, अजीब लोग हैं।
सही कहा आपने .... ये दुनिया अजीब लोगों से भरी पड़ी है ...
डॉ. दानी जी, भास्कर जी, संजय जी, कुसुमेश जी, वंदना जी और क्षितिजा जी...आप सबके प्रति आभार।
अपने आस पास के परिवेश में मौजूद विसंगतियों और कटु सच्चाईयों से रू-ब-रू कराती, भावपूर्ण और सटीक अभिव्यक्ति, जो किसी को भी सोचने के लिए विवश कर दे. आभार.
सादर,
डोरोथी.
वर्माजी ;
बिलकुल सही निष्कर्ष दिया है आपने कि,आज का इन्सान तड़क -भड़क दिखावे वाला हो गया है -भले ही वह अन्दर से खोकला हो.
जिनका न कभी इल्म से नाता रहा कोई,
वो फलसफे बघारते, अजीब लोग हैं..
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This is the irony Mahendra ji. A philosophy which is quite close to reality has been beautifully presented in almost all the couplets of this ghazal.
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... bahut badhiyaa .... behatreen !!!
भीतर भरा हुआ फरेब छल कपट मगर,
ऊपर बदन संवारते, अजीब लोग हैं।
जिनका न कभी इल्म से नाता रहा कोई,
वो फलसफे बघारते, अजीब लोग हैं।
यही दुनिया है ..हर रंग दिखता है ...बहुत अच्छी गज़ल
hahaha..fir to sari dunia hi ajeeb logon se bhar gayi... :)
कुछ ने कहा ख़ुदा है, कुछ ने कहा नहीं,
बेकार वक़्त काटते, अजीब लोग हैं।
ye sher achhe laga... :)
kuch ne kaha khuda hai ......sabhi sher achhe lage .
मरना है एक दिन ये जानते हुए भी वो,
सांसें उधार मांगते अजीब लोग हैं।
बहुत अच्छी गज़ल.......
भीतर भरा हुआ फरेब छल कपट मगर,
ऊपर बदन संवारते, अजीब लोग हैं।
बेहतरीन गज़ल.......
आदरणीय वर्मा जी। एक व्लाग पर आपकी टिप्पणी पढी कि राजनीति में बिल्कुल दिलचस्पी नहीं है उसी वक्त मुझे दुष्यंतकुमार का शेर याद आया कि ’’मसलहत आमेज होते है सियासत के कदम, तू न समझेगा सियासत तू अभी इन्सान है ’ और सीधा आपके दरवार में उपस्थित हो गया जहां मुझे एक शानदार गजल मिली। सांसे उधार मांगते है और खरीदते भी है बडे लोग। अन्तिमशेर तो गजब का है ये आस्तिक और नास्तिकों की वहस में लाखेंा वर्षो से लोग वक्त जाया कर रहे है । चौथे शेर के वाबत कभी कहा गया था कि दया धरम नहीं मनमें मुखडा क्या देखे दरपन में । पढ कर बहुत अच्छालगा
आपकी इस पोस्ट का लिंक कल शुक्रवार को (२६--११-- २०१० ) चर्चा मंच पर भी है ...
http://charchamanch.blogspot.com/
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अजीब लोगों से भरी इस दुनिया में, उनके सारे अजीबोग़रीब लक्षण आपने बयान कर दिए हैं...एक एक शेर लाजवाब!! किसकी तारीफ करूँ!!
ये अजीब लोग ही अक्सर हमारे जीवन में रंग भी घोलते रहते हैं.
kya baat hai ji
bahut hi gazab ki prastuti ..
badhayi ho
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
भीतर भरा हुआ फरेब छल कपट मगर,
ऊपर बदन संवारते, अजीब लोग हैं।
बहुत सुन्दर गज़ल्।
जिनका न कभी इल्म से नाता रहा कोई,
वो फलसफे बघारते, अजीब लोग हैं ..
ये तो जमाने का चलन है ... जो इस तरह से नहीं चलता वो पीछे रह जाता है ...
बहुत खोबसूरत ग़ज़ल है आपकी ....
सत्य कहा...
विसंगतियों पर प्रहार करती प्रभावशाली रचना...वाह !!!!
लोगों की विविध प्रजातियों को रेखांकित-निरूपित करते हुए... एक-से-बढ़कर-एक शे’र...सुन्दर ग़ज़ल...! बधाई
sach hi to..ajeev log hain .
जिनका न कभी इल्म से नाता रहा कोई,
वो फलसफे बघारते, अजीब लोग हैं..
आपने खूब उकेरा है कटु सत्य को अपने ग़ज़ल में . सुन्दर ग़ज़ल .
आपकी खूबसूरत गजल के लिए बधाई महेन्द्र वर्मा जी
कुछ ने कहा ख़ुदा है, कुछ ने कहा नहीं,
बेकार वक़्त काटते, अजीब लोग हैं।
सुन्दर ग़ज़ल ।
यूं ज़िदगी गुजारते, अजीब लोग
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