तेरा मुझसे क्या नाता है, पूछ रही है सारी दुनिया,
अपनी मर्जी का मालिक बन, अड़ी खड़ी है सारी दुनिया।
बारूदी पंखुड़ी लगा कर, काल उड़ रहा आसमान में,
नागासाकी न हो जाए, डरी डरी है सारी दुनिया।
जाने कितने पिण्ड सृष्टि के, ब्लैक होल में बदल गए,
धरती उसमें समा न जाए, सहम गयी है सारी दुनिया।
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया।
संबंधों के फूल महकते, थे जो सारे सूख गए हैं,
ढाई आखर के मतलब को भूल चुकी है सारी दुनिया।
आंधी तूफां तो जीवन में, आते जाते ही रहते हैं,
नई नई उम्मीदों से भी, भरी भरी है सारी दुनिया।
मां की ममता के आंगन में, थिरक रहा है बचपन सारा,
उसके आंचल के कोने से, नहीं बड़ी है सारी दुनिया।
- महेन्द्र वर्मा
30 comments:
आदरणीय महेंद्र जी
नमस्कार !
वाह....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.... उम्दा प्रस्तुति
ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया।
.....मुझे ये पंक्तिया बहुत पसंद आई
समसामयिक रचना के द्वारा आपने सच्चाई का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है.
uske aanchal ke kone se...... bahut sateek abhivyakti .
"ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया।"
ग़ज़ल बहुत अच्छी बन पड़ी है.
महेंद्र जी! सादर बस इतना ही कहना चाहता हूं कि
बहर कहीं पर बहकी है, पर भाव बहुत ही गहरे हैं
जाने कब समझेगी आखिर ये बातें सारी दुनिया.
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
समसामयिक विषय पर गहन चिंतन से परिपूर्ण एक सटीक अभिव्यक्ति.गज़ल का हरेक शेर दिल को छू लेता है..आभार
आप सबके प्रति हृदय से आभार।
महेंद्र जी
सच्चाई बयां करती हुई बहुत ही सार्थक गजल. ..........
mahnedra sir...aaj ke daur kee padtaal karti hui ghazal kahi hai aapne.... khubsurat hai ...
ढ़ाई आखर के मतलब को भूल चुकी है दुनिया।
अच्छी ग़ज़ल्। बधाई वर्मा जी।
mangal grah par mahal banane mavhal uthi sari duniya....sahi kaha .aaj duniya jo nahi hai usi ko pane ko pagal hai jo hai use sahejne me kisi ki koi ruchi nahi hai ...
ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया।
हकीकत को शब्दों में पिरोया है........बेहतरीन रचना
विचारोत्तेजक, आज के हालात पर काफ़ी गंभी प्रस्तुति। आभार आपका।
समकालीन परिस्थिति पर मारक ग़ज़ल..
ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया।
जमीनी यथार्थ है ये तो ....
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
बहुत सार्थक गज़ल ...
आंधी तूफां तो जीवन में, आते जाते ही रहते हैं,
नई नई उम्मीदों से भी, भरी भरी है सारी दुनिया।
उम्मीदों का दामन पकड़ कर ही चल रही है दुनिया . सुन्दर ग़ज़ल .
यथार्थ को उजागर करती बेहद उम्दा गज़ल्।
जाने कितने पिण्ड सृष्टि के, ब्लैक होल में बदल गए,
धरती उसमें समा न जाए, सहम गयी है सारी दुनिया।
युगबोध कराता हुआ बेहतरीन शेर,आपको इसकी ख़ास बधाई.
वैसे पूरी ग़ज़ल प्यारी है.
वारुदी पंख लगा कर ,नागासाकी न हो जाये का डर । ब्लैक होल में दुनिया के समा जाने का डर, ढाई अक्षर के मतलव को भूल गई है इसी लिये तो ये आलम हो रहा है
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति
ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया.....
मुझे ये पंक्तिया बहुत पसंद आई ...........
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति .........
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है खास कर ये शेर पसंद आया ...
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
महेन्द्र भाई, आपकी गजल में समा गयी सारी दुनिया।
---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
मां की ममता के आंगन में, थिरक रहा है बचपन सारा,
उसके आंचल के कोने से, नहीं बड़ी है सारी दुनिया।..
बहुत लाजवाब ... सच है मया का आँचल इतना विशाल है .. सब कुछ समा जाता है ...
आंधी तूफां तो जीवन में, आते जाते ही रहते हैं,
नई नई उम्मीदों से भी, भरी भरी है सारी दुनिया।
क्या कहने !
.
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
कौन सोचता है किसी के बारे में, सबको अपने से ही मतलब होता है। कोई मरे या जिए। लोग तो मंगल पर घर बनायेंगे । मुकेश अंबानी और शारूक खान जैसे लोगों के महल वहां जगमगायेंगे। ।
धरती हो या आकाश, समस्त कायनात अमीरों के लिए ही लगती है।
.
"मां की ममता के आंगन में, थिरक रहा है बचपन सारा,
उसके आंचल के कोने से, नहीं बड़ी है सारी दुनिया।"
माँ के प्रति समर्पित भावभीनी रचना , शुभकामनायें भाई जी !
संबंधों के फूल महकते, थे जो सारे सूख गए हैं,
ढाई आखर के मतलब को भूल चुकी है सारी दुनिया।
bahut sundar!
aaj muh baaye khade saare dushparinaamon ka lekha jokha prastut karti gahan rachnatmakta!
Post a Comment