होनहार बिरवान के होत चीकने पात


कवि वृंद 

‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात‘ और ‘तेते पांव पसारिए, जेते लंबी सौर‘ जैसी लोकोक्तियों के जनक प्रसिद्ध जनकवि वृंद का जन्म सन् 1643 ई. में राजस्थान के मेड़ता नामक गांव में हुआ था। इन्होंने काशी में साहित्य और दर्शन की शिक्षा प्राप्त की। औरंगजेब और बाद में उसका पुत्र अजीमुश्शाह कवि वृंद के प्रशंसक रहे। ये किशनगढ़ नरेश महाराज सिंह के गुरु थे।

कवि वृंद ने 1704 ई. में ‘वृंद सतसई‘ नामक नीति विषयक ग्रंथ की रचना की। इनकी 11 रचनाएं प्राप्त हैं जिनमें ‘वृंद सतसई‘, ‘पवन पचीसी‘ और ‘शृंगार शिक्षा‘ प्रमुख हैं। कवि वृंद सूक्तिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके प्रत्येक दोहे में ज्ञान और अनुभव का भंडार है। साहित्य जगत और जनसामान्य के लिए इन दोहों का विशेष महत्व है। ‘वृंद सतसई‘ के दोहे और उनमें निहित सूक्तियां उत्तर मध्यकाल में चाव से पढ़ी-बोली जातीं थीं। कवि वृंद का निधन सन् 1723 ई. में हुआ।

प्रस्तुत है वृंद के कुछ लोकप्रिय दोहे-


करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात के, सिल पर परत निसान।

उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय,
परो अपावन ठौर में, कंचन तजत न कोय।

सरसुति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात,
ज्यों खरचे त्यों त्यों बढ़े, बिन खरचे घट जात।

सुनिए सबही की कही, करिए सहित विचार,
सर्व लोक राजी रहे, सो कीजे उपचार।

काहू को हंसिए नहीं, हंसी कलह कौ मूल,
हंसी ही ते है भयो, कुल कौरव निरमूल।

मूरख को हित के वचन, सुनि उपजत हे कोप,
सांपहि दूध पिवाइए, वाके मुख विष ओप।

अपनी पहुंचि विचारि के, करतब करिए दौर,
तेते पांव पसारिए, जेते लंबी सौर।

कुल सपूत जान्यो परै, लखि शुभ लच्छन गात,
होनहार बिरवान के, होत चीकने पात।

कबहूं प्रीति न जोरिए, जोरि तोरिए नाहिं,
ज्यों तोरे जोरे बहुरि, गांठि परत मन माहिं।

37 comments:

Rajesh Kumari said...

ek se badhkar ek dohe mahan kavi vrand ji ke vishay me padhkar achcha laga.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

वृंद सतसई के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई.नीतिपरक दोहे कहावतें बन चुके हैं जिन्हें काफी लोग जानते है,प्रयोग में भी लाते हैं मगर कम ही लोग जानते हैं कि यह किसका लिखा है.आप के ब्लॉग में उन रचनाकारों का परिचय व सृजन पढ़कर बहुत से साहित्य प्रेमियों का ज्ञानवर्द्धन होता है.आभार.

Rahul Singh said...

बढि़या. वृंद कवि संबंधी एक अच्‍छी पोस्‍ट संभवतः अवधिया जी ने 'धान के देश में' पर लगाई थी.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बढ़िया प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 16-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा साहब! एक लंबे अंतराल के पश्चात आपकी यह श्रृंखला हमारे समक्ष आई है... लगभग सभी दोहे हमने अपने स्कूली जीवन में कोर्स की किताबों में पढ़े हैं... कविवर वृन्द का संक्षिप्त परिचय भी बहुत अच्छा लगा!!!

vidya said...

अच्छी जानकारी..
बचपन में पढ़ना बोझ लगता था...
अब आनंद आता है :-)
शुक्रिया.

Unknown said...

वर्मा साहब एक अनजानी जानकार से रूबरू कराया है आपने. दोहे जबान पर थे मगर रचयिता से अनजान थे. आभार ..!

दिगम्बर नासवा said...

सतसई के दोहे तो प्रसिद्ध हैं ... बहुत ही अच्छा लगा दुबारा और कुछ नए दोहे पढ़ के ...

पश्यंती शुक्ला. said...

आज के समय में दोहे ...........पहली बार आई हूं आपके ब्लॉग पर उम्मीद करती हूं आगे भी आती रहूंगी..आपकी रचनाएं मुझे बुलाती रहेंगी

S.N SHUKLA said...

इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ब्लॉग पर आगमन और समर्थन प्रदान करने के लिए बहुत - बहुत आभार.

रश्मि प्रभा... said...

काहू को हंसिए नहीं, हंसी कलह कौ मूल,
हंसी ही ते है भयो, कुल कौरव निरमूल।
SABHI DOHE BAHUT HI ACHHE HAIN

Kunwar Kusumesh said...

इन दोहों की कुछ पंक्तियाँ तो पहले से ही सुन रखी हैं और ज़बान पर हैं .लेखक का नाम ज़रूर आज पता चला.आभार.

Patali-The-Village said...

बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Naveen Mani Tripathi said...

vah ...bahut hi upyogi pravishti .....abhar Verma ji.

virendra sharma said...

विज्ञान पक्ष भी मुखर है इन सूक्तियों में -मसलन प्रेक्टिस मेक्स ए मेन परफेक्ट .....धरोहर है हमारे दौर की ये नीतिपरक दोहे .आपने ब्लॉग पे लाके इन्हें अमर कर दिया सच ही कहा है विद्या बांटने से बढती है .सीखने के साथ ही दिमाग भूलने लगता है इसी लिए पाठ को बार बार दोहराना पड़ता है .करत करत ....

Vandana Ramasingh said...

मोह महातम रहत है जौं लौं ज्ञान न होत
कहा महातम रहि सकै उदित भये उद्योत
-वृन्द

अनूठी साहित्य सम्पदा बांटने के लिये बहुत बहुत आभार यहाँ कुछ नए दोहे भी पढ़ने को मिल गए

रचना दीक्षित said...

दोहे तो पढ़े सुने थे परन्तु रचयिता के विषय में जानकारी नहीं. बहुत उम्दा जानकारी देने के लिये आपका धन्यबाद.

अनुपमा पाठक said...

sangrahniya prastuti!

Amrita Tanmay said...

महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई कवि वृंद के बारे में | बहुत अच्छा लगा दोहे पढ़ के | आभार |

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक पोस्ट.

Pallavi saxena said...

बेयहड़ सुंदर एवं सार्थक दोहों से सजी जानकारीवर्धक पोस्ट आपको भी यदि समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुती! बढ़िया लगा!

Jeevan Pushp said...

इनमें से कई दोहे मैं हाईस्कूल में पढ़ा था !
आज फिर से वो लम्हे ताजा हो गये!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
आभार !

ऋता शेखर 'मधु' said...

स्कूल में पढ़े दोहों को फिर से कवि परिचय के साथ पढ़ना बहुत अच्छा लगा...
अब इनके अर्थ ज्यादा समझ में आते है|

Sunil Kumar said...

दोहे तो लगभग सभी पढ़े हुए थे मगर रचियता बारे में ज्ञान नहीं था आभार

संजय भास्‍कर said...

महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई....वर्मा जी

Dimple Maheshwari said...

nice collection.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेहतरीन प्रस्तुति,रचनाकार से परिचय कराने की लिए आभार,...
welcome to new post...वाह रे मंहगाई

ZEAL said...

Thanks for this introduction. very informative and useful post Sir. thanks.

Bharat Bhushan said...

अपनी पहुंचि विचारि के, करतब करिए दौर,
तेते पांव पसारिए, जेती लंबी सौर।
लगता है इस दोहे पूरा पाठ पहली बार आज ही पढ़ा है. कई वर्ष बाद इन दोहों को फिर से पढ़ा उतना ही आनंद आया. आपका आभार महेंद्र जी.

Smart Indian said...

@करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात के, सिल पर परत निसान।


ये दोहे तो स्कूल में भी पढ़े थे और आज भी जहां तहां सुनाने को मिल जाते हैं. किसी रचना की सार्थकता इसी में है की कवी के जाने के बाद भी लोग उसे उद्धृत करते हैं

@मूरख को हित के वचन, सुनि उपजत हे कोप,
सांपहि दूध पिवाइए, वाके मुख विष ओप।

Ramakant Singh said...

कवि भूषण वृंद जी का प्रातकाल स्मरण करवाने का आभार
परम आदरणीय तुलसी मीरा कबीर सूर रहीम को भी इसी योग में
आप सहित प्रणाम

Ramakant Singh said...

कवि भूषण वृंद जी का प्रातकाल स्मरण करवाने का आभार
परम आदरणीय तुलसी मीरा कबीर सूर रहीम को भी इसी योग में
आप सहित प्रणाम

देवेन्द्र पाण्डेय said...

लाज़वाब पोस्ट।..आभार आपका।

Personal Loan said...

Really very niceeeeee

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अनमोल, ज्ञानवर्धक प्रस्तुति....
सादर आभार...

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात, जैसे बरनत युद्ध में नहिं सिंगार सुहात.