सद्गुण ही पर्याप्त है

   
पुष्पगंध विसरण करे, चले पवन जिस छोर,
किंतु कीर्ति गुणवान की, फैले चारों ओर ।

ग्रंथ श्रेष्ठ गुरु जानिए, हमसे कुछ नहिं लेत,
बिना क्रोध बिन दंड के, उत्तम विद्या देत ।

मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि कहि जाहिं ।

जो जो हैं पुरुषार्थ से, प्रतिभा से सम्पन्न,
संपति पांच विराजते, तन मन धन जन अन्न ।

पाने की यदि चाह है, इतना करें प्रयास,
देना पहले सीख लें, सब कुछ होगा पास ।

आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में है व्यर्थ,
एक वर्ष उद्यम भरा, महती इसका अर्थ ।

विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का संसार ।

                                             
                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

बुरा लग रहा था



कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था,
हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था।

मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी,
किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था।

ये चाहा कि इंसां बनूं मैं तभी से,
सभी की नज़र से गिरा लग रहा था।

लगाया किसी ने गले ख़ुशदिली से,
छुपाता बगल में छुरा लग रहा था।

मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था।

जो होने लगे हादसे रोज इतने,
सुना है ख़ुदा भी डरा लग रहा था।

ग़र इंसाफ तुझको दिखा हो बताओ,
वो जीता हुआ या मरा लग रहा था।

                                                              -महेन्द्र वर्मा

तेरा-मेरा-सब का

सबसे ज्यादा अपना है, 
वह जो मेरा साया है।

मन की आंखें खुल जातीं,
दिल में अगर उजाला है।

कुछ आखर कुछ मौन बचा,
यह मेरा सरमाया है।

दुनियादारी है क्या शै,
धुंआ-धुंआ सा दिखता है।

आंसू मुस्कानों से रिश्ता,
तेरा मेरा सब का है।

सुर में या बेसुर लेकिन,
जीवन सब का गाता है।

इतनी तेरी धूप, ये मेरी,
ये कैसा बंटवारा है।

                                                       -महेन्द्र वर्मा

ग़ज़ल






उतना ही सबको मिलना है,
जिसके हिस्से में जितना है।

क्यूं ईमान सजा कर रक्खा,
उसको तो यूं ही लुटना है।

ढोते रहें सलीबें अपनी, 
जिनको सूली पर चढ़ना है।

मुड़ कर नहीं देखता कोई, 
व्यर्थ किसी से कुछ कहना है।

जंग आज की जीत चुका हूं,
कल जीवन से फिर लड़ना है।

सूरज हूं जलता रहता हूं,
दुनिया को ज़िंदा रखना है।

बोल सभी लेते हैं लेकिन,
किसने सीखा चुप रहना है।

                                              -महेन्द्र वर्मा

आभास



लगता है सत्य कभी
अथवा आभास,
तिनके-से जीवन पर
मन भर विश्वास।

स्वप्नों की हरियाली
जीवन पाथेय बनी,
जग जगमग कर देती
आशा की एक कनी।

डाल-डाल उम्र हुई
पात-पात श्वास।

जड़ता खिलखिल करती
बैद्धिकता आह !
अमरत्व मरणशील
कहानी अथाह।

चिदाकाश करता है,                 
मानो उपहास।

                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

जिस पर तेरा नाम लिखा हो




लम्हा  एक  पुराना  ढूंढ,
फिर खोया अफ़साना ढूंढ।

वे गलियां वे घर वे लोग,
गुज़रा हुआ ज़माना ढूंढ।

भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद  एक  सयाना  ढूंढ।

लोग बदल से गए यहां के,
कोई  और  ठिकाना  ढूंढ।

कुदरत में है तरह तरह के,
  सुंदर  एक  तराना ढूंढ।

दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा  इक  पैमाना   ढूंढ।

जिस पर तेरा नाम लिखा हो,
ऐसा   कोई   दाना   ढूंढ।



                                          - महेन्द्र वर्मा

डरता है अंधियार

जगमग हर घर-द्वार  कि अब दीवाली आई,
पुलकित  है  संसार  कि  अब  दीवाली आई।


दुनिया के  कोने-कोने  में  दीप  जले हैं, 
डरता है अंधियार कि अब दीवाली आई।


गीत प्यार के गीत मिलन के गीत ख़ुशी के, 
गाओ  मेरे   यार   कि  अब   दीवाली  आई।


जी भर जी लो गले लगालो सबको हंसकर,
जीवन के  दिन  चार  कि अब दीवाली आई।


दुनिया से  अब  द्वेष  मिटाकर ही दम लेंगे,
दिल में रहे बस प्यार कि अब दीवाली आई।


सुख समृद्धि स्वास्थ्य संपदा मिले सभी को,
यही  कामना   चार  कि   अब दीवाली आई।


धरती  सागर  जंगल सरिता गगन पवन पर,
हो सबका  अधिकार कि  अब  दीवाली आई।


खुद  भी  जियो   और   दूसरों को जीने दो,
जीवन  का यह सार कि अब  दीवाली  आई।



जीवन के इस महा समर में दुआ करें हम,
हो न किसी की हार कि अब दीवाली आई।


अक्षत  रोली  और  मिठाई  ले  आया  हूं,
स्वीकारो  उपहार  कि अब दीवाली  आई।

दीपावली की अशेष शुभकामनाओं के साथ...

                                       -महेन्द्र वर्मा