संत सुंदरदास प्रसिद्ध महात्मा दादूदयाल जी के शिष्य थे। इनका जन्म किक्रम संवत 1653 में राजस्थान के द्यौसा नामक स्थान में हुआ था। इन्होंने वि.सं. 1746 में देहत्याग किया। इनकी रचनाओं में नैतिकता और मानव के गुणों का अच्छा चित्रण है। प्रस्तुत है संत सुंदरदास जी का एक छंद -
वाणी का महत्व
बचन तें दूर मिलै, बचन विरोध होइ,
बचन तें राग बढ़े, बचन तें दोष जू।
बचन तें ज्वाल उठै, बचन सीतल होइ,
बचन तें मुदित होय, बचन ही तें रोष जू।
बचन तें प्यारौ लगै, बचन तें दूर भगै,
बचन तें मुरझाय, बचन तें पोष जू।
सुंदर कहत यह, बचन को भेद ऐसो,
बचन तें बंध होत, बचन तें मोच्छ जू।
11 comments:
इस खूबसूरत छंद को हम लोगों के साथ बांटने के लिए धन्यवाद....
ब्लॉग जगत पर आपका स्वागत करता हूँ....आपकी टिप्पणी के लिए भी शुक्रिया...
यूं ही उत्साहवर्धन करते रहें...
सुन्दर दास के बारे में बताने और उनकी रचना को हमारे समक्ष प्रस्तुत करने के लिए हम आपके आभारी है .
संत सुन्दरदास जी से परिचय करवाने के लिए और उनकी रचना से रूबरू करवाने के लिए आभार!
सुंदर दास जी की रचना से रूबरू करवाने के लिए आभार |अपने ब्लॉग पर आपका स्वागत है |आभार
आशा
Adaraneey sir,
sant sundar das ji se aur unke is chhand se parichay karvane ke liye abhar sveekar karen.
poonam
संत सुन्दरदास जी से परिचय करवाने के लिए आभार.
आप जो राखिये बचन , बढता अन्दर रोष होई,
उगल दीजे बाहर, तब जाके संतोस जू...
बड़ा संकलन.. जारी रखिये ...
बड़ा = बढ़िया *
भाईजी महेन्द्र वर्मा जी
नमस्कार !
राजस्थान के संत सुंदरदास जी के परिचय और कवित्त छंद में प्रेरक वाणी की प्रस्तुति के लिए आपका हृदय से आभार !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Mahenderji,
Sunder Das ji ke chand prerak hain ,prastut karke aapne ham sab ko ek rasta dikhaya hai jis per chalne ka prayas sab ko karna chahiye.
Sundar das ke shishya kon the
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